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दयाल शरण

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दयाल शरण

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ताक़ीद

ताक़ीद

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जब कभी भी तुम मुझको

कहीं खोजा करना

कद से ऊंची चाहतों को

ज़रा अलहदा रखना


तुम्हे पता है कि बनावट से

ज़रा ज्यादा गुरेज है मुझको

घर से निकलो तो उनको

संग लेकर नहीं चलना


मेरी परवरिश में रिश्ता है

तालीम में भी रिश्ता

घर में ग़र खाक भी खोजना है

तो जज्बातों को तवज्जो देना 


बन्धनों का अपना वजन तो होता है

संग चलना तो कंधों में ताकत रखना

मन से उतरे तो रंग फिर कहाँ चढ़ता है

कूचियों को यह मर्म भी बता रखना


कीमती वक्त ग़र तुम्हारा है

तो बेशक हमारा भी है

वक्त पे बेवक्त कोई राग

ना कभी छेड़ा करना!



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