" स्वर्णिम भारत "
" स्वर्णिम भारत "
रक्त का प्रवाह
तीव्रता से चल पड़ा
ह्रदय जोर जोर से
धड़कने लगा ,
बच्चे बिलखने लगे ,
युवाओं में जोश
उबलने लगा ,
वरिष्ठों ने भी अपना
सीना तान दिया ,
माता बहनों ने भी साथ दिया !!
कब तक बाँटेंगे
अपनी धरती को ?
जब हम में है
बस एक खून
है एक भूख
है एक प्यास ,
क्यों मानवता है
त्रस्त यहाँ ?
है भीड़ तंत्र का
रोग यहाँ ?
बलात्कारी जश्न
मानते हैं ,
बहु बेटिओं को सदा
तड़पाते हैं ,
रक्षक भक्षक बन रहे आज ,
खाकी वर्दी की भी ,
अब ना रही लाज !!
झूठे वादों से
तंग हुए ,
सपने तो अब
सपने ही रहे ,
अब हम सबको
कुछ करना है !
घृणित इतिहासों
के पन्नों को
कूड़ेदानों में रखना है !!
हमें रामराज्य के
सपनों का एक
भव्य इमारत
गढ़ना है !
जहाँ छल ना हो
जहाँ सब जिएं
ऐसे भारत का सपना है !!
