स्वार्थी संसार
स्वार्थी संसार
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
1 min
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
740
काश ! मैं समझ सकती,
व्यथा इस संसार की।
जो होता है, इस दुनिया में
द्वेष और अनुराग की।
यहाँ सब तौले जाते,
स्वार्थ की तराजू पे,
दो मीठे बोल भी,
यहाँ मिलते नहीं बिन स्वार्थ के।
एक वह वक्त था,
जब लोग मरते थे आन पे,
पर आज की क्या बात है,
लोग मर मिटते हैं दाम पे।
जी तो करता है,
दुनिया के उस पार चलूँ,
जहाँ ना कोई स्वार्थ हो,
चारों ओर श्रद्धा का ही वास हो ।