सुविचार सुंदरी
सुविचार सुंदरी
मानुष जन्म लेकर प्राणी
करता जो भी व्यापार उपकार
जब तक प्राण प्रिय पत्नी संग न हो
हो जाता सब बर्बाद और बेकार।।
पत्नी पत्नी कह कह के
बीतते दिन धीमे धीमे हरेक
सच एक यह भी जान ले
पत्नी पत्नी के होते रूप अनेक।।
एक सहज सरलता से भोली है
सबसे कही सुनी जाती
पर जानती वह सारे जीवन मूल्य
घर परिवार होते उसके देव तुल्य।।
कंकङ कङक चुुन दाने दाने को
जो जी जां से है निखारती
पत्नी वह आश्रित हर नयन की
होती पालनकर्ता माता भगवती।।
कंधे से कंधा मिलाकर अपना
संग अपनों के आगे बढती जाती
पत्नी सचमुच वही तो है
जो संगिनी जीवन की कहलाती।।
सब खोकर पर न रोकर
प्रशस्त नवजीवन की राह करे जो
ईश ने रची जो जोङी वास्ते तेरी
पत्नी सच की होती है वो।।
बद बदतर जीवन हो जाता वहाँ
झूठ रूठ के भय धीन जहाँ
बकवास रह रूक सुनाया जाता
सिवाय इसके पत्नी को कुछ और न आता।।
"दो पहिए जीवन गाङी की हैं पत्नी पति
गाङी होती यह ठसाठस लदी
पार निकल जाती यह हर बाधा से
ग़र पहिए दोनों न हों कभी हीन मत।
