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Jalpa lalani 'Zoya'

Children Stories

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Jalpa lalani 'Zoya'

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सुनसान रास्ता

सुनसान रास्ता

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एक दिन मैं अकेली सुनसान रास्ते पर जा रही थीं

धुंधला-धुंधला सा था सब, पता नहीं कहाँ जा रही थी।


मूझे लगा कोई पीछा कर रहा है मेरा

क़ुछ अजीब सी कदमों की आवाज़ ने मुझे घेरा।


पीछे मुड़ के मैंने देखा सिर्फ़ छाया था घना अंधेरा

नग्न आकाश के नीचे ये अजीब सी आवाज़े मुझे रही थी डरा।


काँपते हुए पैरों के साथ थोड़ी हिम्मत जुटा के आगे बढ़ी

महसूस हुआ मुझे की, है कुछ तो गड़बड़ी।


मन ही मन मे ईश्वर का नाम लिये ढूँढ रही अपनी गली

रास्ता जैसे भूलने लगी थी, आँखे पैड गई जैसे धुंधली।


रास्ता ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा था

मंजिल मेरी दूर लग रही थी, डर और बढ़ रहा था।


वो भयानक कदमो की आवाज़ और तेज़ी से बढ़ गई

मैंने भी अपने कदमो पर ज़ोर लगाया जल्दी से अपने घर की और चल पड़ी।


दिल की धड़कने बढ़ गई, पीछे देखने से मैं झिझक रही

सोचा एकबार देख ही लू कहीं ये मेरा भ्रम तो नही।


घबराहट के साथ मैंने अपना मुँह पीछे मोड़ा

अचानक से किसी ने मेरा हाथ पकड़ा।


उठो बेटा हो गया सवेरा, वो हाथ मेरी माँ का था

ईश्वर का शुक्रिया किया अच्छा हुआ सिर्फ़ वो एक बुरा ख़्वाब था।



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