Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

सुन समय के लेखाकार

सुन समय के लेखाकार

1 min
350



सुन रे 

समय के मुनीम कलैंडर

सुन!


नहीं चाहिए तुम्हारा लेखा

नए साल में

तारीखों के संदर्भों से,

नहीं है अब 

कोई नई संकल्पनाएं,

न ही उड़ने की ताकत बची है

संवेदना के नाजुक पंखों में,

न मन के लड्डू खाने का मन रहा अब,

समय की सत्ता का कुहरा 

छा गया है उजले-मुस्कराते चेहरों पर,

वक्त के सूरज ने

अनावृत्त कर दिया है सब कुछ

धुंध से,

सारे चरित्र

आ गए हैं सामने

कोठेवाली की इज्जत जैसे !


सुनो मुनीमजी!

क्या दे पाओगे विगत का लेखा

सरोकारों के ओटीपी के साथ?

गरीब को रोटी,

नारी को समानता व इज्जत,

सिर छुपाने को छप्पर,

लपेटने को लंगोटी

हर हाथ को काम के 

तुम्हारे 

लहुलुहान घोषणा-पत्र

गरीब की इज्जत

और औरत की सुरक्षा रो रहे हैं

तुम्हारे आत्मीय स्वांगों के 

बारहवें पर रुदालियां-सी,

मुख ऊपर मिठियास खट माँहिं खोटे की 

तुम्हारी भूख के झुनझुने से 

कब तलक सोम शर्मा बन

सपनों के सत्तू घड़े भरूं।


सुन ओ वक्त के परीक्षक!

कर सके तो इतना कर

बाबाओं को संस्कारित कर

निर्भया का भय मिटा,

शब्द के ठेकेदारों को शब्द बख़्श

चौथे स्तंभ का ज़मीर जगा,

वक्त पर न्याय हो

और आंख का पानी मरे नहीं बस!


ओ लेखपाल!

मत पलट सिर्फ पन्ने

महीनों के हवाले,

छल, छद्म-पाखंड, झूठ और फरेब की

इनकी मूल बहियां खोल ना

ताकि यह धुंध छंटे

समय बदले,

भोर का उजास हो तो

मैं भी कहूं

नव वर्ष मंगलमय हो

और ,तुम्हारा होना

अर्थ दे जाए खुद को।



Rate this content
Log in