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Jyoti Astunkar

Others

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Jyoti Astunkar

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सुकून

सुकून

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धुंध, ठंड और ओस

प्रकृति के प्यारे अंदाज़,

सुबह बहती ठंडी हवा,

और अंगीठी में सुलगते अंगारे,


मशगूल रहा दिनभर,

आवाजाही और खातिरदारी में,

गांव है एक छोटा सा,

रात सोया था ज़रा देर से,


जलाई हुई अंगीठी की आग,

अब भी जागी सी है,

सुलगते कंडे और लकड़ियों के,

अंगारों में अब भी गर्मी है,


खामोश गलियों में,

सुबह की रौनक है प्यारी,

ओस और धुंध के मिलन से,

ठंडक और धुंधलाहट है न्यारी,


गुज़रते हुए टेढ़ी मेढ़ी गलियों से,

नज़र पड़ी रात की अंगीठी पर,

सुलगते अंगारे अब शांत हैं,

निकलते धुएं के अपने अलग अंदाज़ हैं,


बुला रहें जैसे मुझे करीब,

ज़रा सी फूंक, और नन्ही चिंगारियां,

ओझल होता सफेद स्लेटी धुंआ,

और लाल पीली लहराती लपटें,


कुछ पलों का हमारा साथ,

एक अल्पविराम और सुकुनियत का एहसास,

हाथों को गर्मी, आंखों को नमी,

और चेहरे को नारंगी ताज़गी का आभास।



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