स्त्री
स्त्री
स्त्री तेरी अजब कहानी
तूने युग सृष्टि में ना जाने
कितने वर्तमान इतिहास जुबानी।।
ना जाने कितने ग्रन्थ काव्य
पुराण रचे गये पर तेरी महिमा
किसी ने न जानी।।
अवगुण और गुणों की खान
स्त्री के होने से सृष्टि होने का
प्रमाण।।
स्त्री क्रोध की ज्वाला
टेड़े मेढे को सीधा कर देती
ममता की कोमल कोख,
प्रेम सरोवर की रसधार।।
प्रेम प्रसंग की प्रमाणिकता नैतिकता निर्धारक
हाला, प्याला, मधुशाला खुशबू
मादकता का पर्याय।।
स्त्री ,कली ,कोमल ,अबोध अनबुझ,अंजान
ऋषि , महर्षी,ब्रह्मर्षि , वेद ,पुराण
ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश जान न सके
स्त्री का भेद विभेद रहस्य राग अनुराग।।
कहीं तारिणी भरणी स्त्री कही
भक्षक काली दुर्गा सामान
युग आधार है।।
निति, नियत, शास्त्र है स्त्री
निर्माण, विकास की बूनियाद
स्त्री बैभव, गरिमा, गर्व, गान
लज्जा ,लाज।।
स्त्री युग उजियार
स्त्री क्रोध काल
स्त्री घृणा में नोचती बाल
की खाल।।
स्त्री जजनी, बहन ,प्रेयसी,
पत्नी रिश्तों का परिवार
समाज अर्थ आवश्यकता
आविष्कार।।
स्त्री, स्त्री की शत्रु
स्त्री से स्त्री को घृणा
स्त्री की कोख से स्त्री,
स्त्री की कोख में ही
मारी जाती बेटी स्त्री का
अस्तित्व सार।।
बिना मृत्य चिताग्नि में
भस्म होती स्त्री, स्त्री ही
होती बहु माँ सास।।
स्त्री ही स्त्री का अंधी गलियों
में करतीं व्यापार
स्त्री गर पतित पावनी
पतितो की उद्धारक
स्त्री पतितो का मार्ग।।
स्त्री काँटो का आभूषण
स्त्री माथे का चन्दन मुकुट
महान।
स्त्री गुण गरिमा की सगश्वत
स्त्री अवगुण का संसार
स्त्री गले की बेशकीमती हार
स्त्री फांसी का फंदा लेती प्राण।।
स्त्री वीरों की शोभा
स्त्री कायर का काल
स्त्री क्षमा, दया, सेवा
दान, धर्म ,कर्म का
ह्रदय हर्ष सत्कार।।
स्त्री कुटिल, कठोर
रौद्र ,रूद्र, हठ हाय लोहा
चट्टान सुकुमारी स्त्री ही धारण
करती खड्ग तलवार।।
स्त्री पुरुष की मिस्त्री
संस्कृति संस्कार
स्त्री पथभ्रष्ट तोड़ती
युग का अहंकार।।
स्त्री छाया है माया है
देह की काया में पूर्ण साश्वत
संसार।।
स्त्री विकृतियों की विरासत
धन्य, धैर्य मोक्ष की धाम
स्त्री ऋतू, मौसम नहीं
स्त्री कृपा पात्र करुणा निधान।।
स्त्री मर जाती है प्रेम में
घृणा ग्लानि में देती मार्
अबला कहीं स्त्री कहीं
आलम्बन आधार।।
शक्ति साहस की देवी
मार्ग उद्धार संहार में मारी जाती
करती कहीं संहार।।
स्त्री तेरे रूप अनेको
तेरी महिमा अपरम्पार
देवो की देवी तू है
दैत्य दुष्ट संग डायन
तेरा जैसा वरण किया
जिसबे जैसा वैसा उसकी
तारण हार।।
तू ऋद्धि सिद्धि है लक्ष्मी
का अवतार जग वंदन
है कुल विध्वंसक दरिद्रता
की पूतना सुपनखा विकट
विकराल।।
प्रकृति प्रबृति की स्त्री
तू रचनाकार तू घायल
शेरनी नागिन का भी
प्रेम प्रवाह।।
स्त्री तू सरस्वती शिवा वैष्णवी
रणचंडी विकट विकराल
तेरे ही होने से अस्तित्व ब्रम्ह
ब्रह्माण्ड।।