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मिली साहा

Others

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मिली साहा

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सर्दियों की वो शाम

सर्दियों की वो शाम

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सर्दियों की वो शाम, गांँव के आंगन में महफ़िल जमी थी,

वर्षों बाद यूँ साथ बैठकर सबकी आंँखों में उमंगे थमी थी,


आज भी यादों में कैद है वो लम्हा वो साथ खिलखिलाना,

आग के चारों तरफ गोला बनाकर सबके साथ गुनगुनाना,


ठंड थी कड़ाके की पर बातों की हलचल में कहांँ ठंड लगे,

बेशुमार बातें की गठरियांँ जब एक के बाद एक खुलने लगे,


मक्के की रोटी सरसों का साग दादी माँ के हाथों का स्वाद,

सर्दियों की इस खूबसूरत शाम को और बना रही थी खास,


छुपके आग में आलू पकाना दादी का प्यार से कान खींचना,

वो प्यारा सा एहसास आखिर कोई कैसे चाहेगा इसे भुलाना,


बातों ही बातों में शाम से कैसे रात हो गई पता ही ना चला,

किटकिटाते दाँतों की ध्वनि कब गायब हुई पता ही न चला,


ऊंँची उठती आग की लपटें धीरे-धीरे अब शांत हो रही थी,

पर हमारी वो मस्ती तो थमने का नाम ही, कहाँ ले रही थी,


जीवन की खास यादों में सर्दियों की ये शाम भी शामिल है,

बार-बार वही महफ़िल सजाने को, तैयार हमारा ये दिल है।


की वो शाम, गांँव के आंगन में महफ़िल जमी थी,

वर्षों बाद यूँ साथ बैठकर सबकी आंँखों में उमंगे थमी थी,


आज भी यादों में कैद है वो लम्हा वो साथ खिलखिलाना,

आग के चारों तरफ गोला बनाकर सबके साथ गुनगुनाना,


ठंड थी कड़ाके की पर बातों की हलचल में कहांँ ठंड लगे,

बेशुमार बातें की गठरियांँ जब एक के बाद एक खुलने लगे,


मक्के की रोटी सरसों का साग दादी माँ के हाथों का स्वाद,

सर्दियों की इस खूबसूरत शाम को और बना रही थी खास,


छुप के आग में आलू पकाना दादी का प्यार से कान खींचना,

वो प्यारा सा एहसास आखिर कोई कैसे चाहेगा इसे भुलाना,


बातों ही बातों में शाम से कैसे रात हो गई पता ही ना चला,

किटकिटाते दाँतों की ध्वनि कब गायब हुई पता ही न चला,


ऊंँची उठती आग की लपटें धीरे-धीरे अब शांत हो रही थी,

पर हमारी वो मस्ती तो थमने का नाम ही, कहाँ ले रही थी,


जीवन की खास यादों में सर्दियों की ये शाम भी शामिल है,

बार-बार वही महफ़िल सजाने को, तैयार हमारा ये दिल है।



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