सर्दी की वह शाम
सर्दी की वह शाम
सुबह-शाम सर्दी की
और गर्मी की दोपहर।
बरसात की अंधेरी रात में,
बाहर जाना भाता है कहर।
कैसे भूली जा सकती है,
जनवरी की वह सर्द शाम।
जब हर कोई चाहता है,
रजाई में घुसकर करना आराम।
कैसे कर सकता था आराम,
बने कुछ ऐसे थे हालात?
पिताजी के घायल होने की,
संदेशवाहक ने बताई बात।
क्या अंधेरी सर्द रात और,
क्या सन-सन करती हवा का डर।
उठाई मोटरसाइकिल फौरन,
और उड़ चला उस ओर पहुंचना था जहां पर।
रास्ते में कुछ होश ही न था,
होश आया पिताजी को सही-सलामत देखकर।
"धन्यवाद , प्रभु का करते हैं हम सब"
डाक्टर साहब बोले , भगवान के आगे हाथ जोड़कर।
मुझे हौसला देते बोले,
" बिल्कुल ठीक हैं, नहीं करना कुछ भी फिकर।"
तुरंत अलाव जलवाया,
रजाई और चाय मंगवाई ,
ठंड से बिगड़ी मेरी हालत देखकर।
सर्दी की बीती वह शाम,
मुझे याद रहेगी अपनी पूरी उम्र भर।