STORYMIRROR

Prahladbhai Prajapati

Others

2  

Prahladbhai Prajapati

Others

सफर की किताब

सफर की किताब

1 min
145


दिन के उजाले में सोते रहे

रात के अन्धेरे में घूमते रहे

जब हुआ ज्ञान सफर का तो

हम अंत करीब पहुंच गए

अब दिन का न उजाला न रात का अँधेरा

सफर में सिर्फ रहा है अन्धेरा ही अँधेरा

अब हम न आगे जा सकते न पीछे

पंथ का पूर्ण विराम ही सफर निशान

कौन कहाँ से आया है कौन कहाँ जाएगा

किसका रिश्ता व् काम किसके साथ

पीछे देख के रोना नहीं आगे देख उलझना नहीं

वक्त की रफ्तार में बहते जा पहले से निश्चित है किताब


Rate this content
Log in