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Keshi Gupta

Others

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Keshi Gupta

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सोचती हूं

सोचती हूं

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जब भी सोचती हूं उन लोगों के बारे में 

जो करते हैं जमीर को दबा हदें पार

कैसे कक्षा दसवीं को करते हैं पास

करके चापलूसी की हदें पार


विद्यालय में लेते हैं दाखिला कोटे के तहत

दाँव पेच की कर सभी हदें पार

नौकरी भी करते हैं तो सिफारिश से जनाब 

बेच देते हैं जमीर भ्रष्टाचार की कर हदें पार


शादी रचाते हैं तो करते हैं गाड़ी की मांग

इंसानियत की कर के सब हदें पार

फिर भी दोषी ठहराते हैं समाज को

खेल कानून से करते हैं सभी हदें पार


झांकते नहीं कभी अपने गिरेबान में

 वरना अपनी हदों में रहना सीख जाते जनाब



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