सोच -सोच का फर्क
सोच -सोच का फर्क
गरीब कौन है,
ये कहना मुश्किल है
वो पैसे वाला इंसान,
जिसके चेहरे मे खुशी नहीं है,
या वो इंसान जिसके चेहरे मे खुशी है
पर जेब में पैसा नहीं
या दोनों अपनी-अपनी जगह अमीर है,
या दोनों अपनी -अपनी जगह गरीब है।।
कोई दिल का अमीर है,
और कोई जेब का अमीर है
बात सही मायने मे खुशी की है,
हर इंसान खुशी की तलाश में
इधर -उधर भाग रहा है,
रिश्ते है साथ है पर
फिर भी अकेला भटक रहा है,
जाने क्या पाना चाहता है,
ये वो भी नहीं जानता
पर चले जा रहा है, चले जा रहा है।।
ग़रीब-गरीब है पर
खाना परिवार के साथ बैठ कर खाता है,
हँसता है, बोलता है
साथ मे आनंद उठाता है,
वहीं अमीर सारी सुख सुविधाओं के बावजूद,
अपने-अपने कमरों मे अपने मोबाइल
और टी.वी के साथ खाना खाता है,
उसी में ही आनंद के पल उठाता है
परिवार को छोड़ हँसने के लिये
हास्य क्लब जाता है।।
पर न जाने क्यों मेरा दिल
कहीं और ही भटकता है,
असली खुशियाँ और आनंद
तो तभी मिलता है
जब आप जैसी भी हालात में हो
आपके चेहरे की मुस्कान देख कर
किसी दूसरे का चेहरा खिलखिला उठता है।।
आपके साथ बात करने के लिए
हर कोई आतुर होता है,
आपके साथ बैठ कर किसी भी
इंसान को सुकून मिलता है
आपको दो पल देख कर
उसका जीवन आनंदित होता है,
वो इंसान वो रिश्ता कोई भी हो सकता है
हर वो इंसान जो दुसरे इंसान के काम आ सके
जो किसी भी चेहरे मे मुस्कान ला सके
पैसे न हो पर दूसरे को
खुशियों से मालामाल कर दे
वही इंसान दिल का अमीर और
उसका जीवन आनंद से परिपूर्ण होता है।।
जिसके पास जितना पैसा
उसके लिए वैसी गरीबी रेखा
जिसका दिल जितना बड़ा,
उसका जीवन उतने ही आनंद से भरा।।