स्कूल का बस्ता
स्कूल का बस्ता
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उम्र के हर पड़ाव से अच्छा था
वो सलोना सा बचपन
कितना प्यारा सच्चा था
वो खिलौना सा सुंदर बचपन
फिक्र नही थी कमाने की
ना थी चिंता कुछ गंवाने की
दोस्तों का प्यारा लगता साथ था
वो जमाना भी कितना खास था
जिम्मेदारी ने अब ऐसा जकड़ा
घर ग्रहस्थी ने अब ऐसा पकड़ा
भूल गए मानो वो बेफिक्र जमाना
अब मुस्कुराहट को तरसते हैं
तो याद आता है वो खिलखिलाना
ऐ समय तू मुझे फिर से पीछे पहुंचा दे
मुझको मेरे बचपन से मिला दे
जिम्मेदारी की चादर मुझसे हटाकर
फिर से मुझे वो स्कूल का बस्ता पकड़ा दे।