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Dr Manisha Sharma

Others

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Dr Manisha Sharma

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सखी सहेली

सखी सहेली

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सखी सहेली

कोई पुरानी कोई नई नवेली


कोई सुलझी सुलझी सी

कोई जादू या पहेली


कोई रजनीगंधा सी महके

कोई जैसे हो चमेली


कोई है पच्चीस की 

किसी का हो गया पचपन

लेकिन सब में बचा हुआ है

थोड़ा थोड़ा बचपन


अलग अलग हैं ढंग सभी के

अलग अलग से रंग

लेकिन मिलकर सब हो जातीं

जैसे मस्त मलंग


बेटी, पत्नी, माँ ना जाने

कितने रूपों में ढलती है

जीवन की सारी सौगातें

इसके हाथों पलती हैं

भीड़ में फिर भी बनी हुई है

ये तो निपट अकेली 

सखी सहेली

सखी सहेली


धरती पर ये कदम जमाये

आसमान भी छू ले

ख़ुद अपनी पहचान बना ले 

चाहे दुनिया भूले


इसकी आँखों में बसते हैं

हँसी खुशी और आँसू

फूल सी कोमल मेरी सहेली

फिर भी सबसे धांसू


लहर लहर से बने है सागर

बून्द बून्द से गागर

आज हृदय फिर नवल हुआ है

साथ तुम्हारा पाकर

सखी सहेली

मेरी सखी सहेली।



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