श्याम की मुरली
श्याम की मुरली
मैं हूँ श्याम की प्यारी मुरली,
कर में धारण करता था।
होंठों पे सजा के, उँगलियाँ नचा के,
मधुर मधुर नाद करता था।
आज समय बदल गया हे
वो तो द्वारका का नाथ हे।
शंख-चक्र-गदा धारण करके,
होंठों से शंख नाद करता हे।
वृज में वो ग्वाल बनकर ,
मुझ को मधुर बजाता था।
देव गण पुष्प बरसाते थे,
और ब्रह्मांड को नृत्य कराता था।
अब तो वो द्वारकाधीश हे,
जब वो शंख बजाता हे।
देव गण सब डरते है और,
त्रिभुवन थर थर कांपत हे।
गैया चरा के, मुझ को बजा के,
गोपी जनों को बुलाता था।
मुझ में मधुर तान छेड़कर,
सबको भान भुलाता था।
अब तो वो राजाधिराज हे,
सोला हजार आठ रानियां हे।
न वहाँ यमुना का तट है और,
न कहीं रास की लीला हे।
एक बार तू श्याम बनकर,
फिर से यमुना तट आजा।
में तेरी "मुरली", मुझे बजाकर,
रास रचाकर, सबको नचा जा।
