श्याम दुलारी
श्याम दुलारी
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पल-पल विरहा की आग में जलती, क्यों वह इतनी प्यारी है।
ना कोई उसकी राह समझता, की वह श्याम दुलारी है।।
हर दिन एक आस में आता, अब तो मिलन की बारी है।
फिर भी ना मिलता प्रतिरूप श्याम का, कैसे वो श्याम को प्यारी है।।
उलझन है कैसी जीवन की, किस परीक्षा की अब बारी है ।
कैसे समझाये दुनिया को, की वह तो श्याम प्रेम में सब कुछ हारी है।।
दहल जाये पीड़ा देखकर उसका, फिर भी खुशी ही झलकारी है।
मिल जाएगा उसका श्याम एक दिन उसी को, क्योंकि वो श्याम दुलारी है।।