पापा की परी
पापा की परी
पापा की परी को
एक दिन उड़ जाना है।
इस घर को उसके बाद से
सूना सूना ही पाना है।
अटकी रहती है जान
जिसकी एक मुस्कुराहट में,
सौंपकर उसे अनजान हाथो में
दूसरे घर चले आना है।।
आएगी जब वो घड़ी विदाई की,
लाल जोड़े में दिल निकालकर
किसी के हाथो में उसे थामाना है,
न जानती वो अभी दुनिया की ये बेरहमी,
न जाने कैसे अब उसकी मुस्कुराहट को
उसके चहरे पर रह जाना है।
कहती थी की कृष्ण है वो मेरा,
उसी के घर मुझे जाना है
वो कृष्ण भी इस मुस्कुराहट को
ऐसे ही कभी कम नही होने देगा,
बस खुद को यही विश्वास दिलाना है।
समारोह है इतना बड़ा,
खुशियाँ चारो ओर है,
पर क्यों अंदर से ये दिल उदास है,
और हिम्मत भी कमज़ोर है
किया है ये सब जिसके लिए
वो तो मेरे घर में आया माखन चोर है।
दिया है दान बेटी का,
पिता अब भी सराबोर है।
किसकी मुस्कान से
थकावट मिटती पूरे दिन की,
किसके चहरे पर
अब छवि दिखेगी अपने मन की,
आ गया वो दिन
पापा की परी को उड़ जाना है।