श्वेतवसना इस जगत को नेह दो
श्वेतवसना इस जगत को नेह दो
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मार्ग सुचिता का बहुत दुश्वार है ।
किन्तु यह ही मुक्ति का आधार है ।।
प्रेम, करुणा, सत्य का पथ जोह तू ;
लोभ लिप्सा हित भ्रमण बेकार है ।
जो मिला जैसा मिला स्वीकार कर ;
सब विधाता का दिया उपहार है ।
राम कर सकते नहीं अब वनगमन ;
इस अजब युग का गजब व्यवहार है ।
कर्म ही है धर्म मानव का, यहीं ;
बाइबिल कुरआन गीता सार है ।
श्वेतवसना इस जगत को नेह दो ;
जग बहुत व्याकुल व्यथित बीमार है ।
