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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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श्वेत क्रांति की आशा

श्वेत क्रांति की आशा

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ये सोचकर चुप रही एक तरफ़ा

कवायद रही रिश्ता बचाने की मेरी,

मेरी फ़रियादों की मुहिम कोई काम ना आई

तुमने कभी ना सुनी, 

कभी सुनी भी तो "ना" से टकराकर लौट आई,

स्त्री कभी हारती नहीं उसे हराया जाता है जबरदस्ती..! 


तुम्हारे माथे पर मढ़ी लकीर हूँ 

मेरी उम्र पे लगी चोट का निशान मिटता नहीं, 

लग्नवेदी का धुआँ आँखों को जला रहा है 

दुधिया आसमानी हंसी लिए धुएँ के बादलों को उड़ा देना है..!

आँसूओं की झील में तैरना सीख लिया है मैंने..! 


तुम्हारा कसूर नहीं 

मेरा जन्म ही एक मजबूरी थी, 

मैं अनमनी थी 

कोख मेरी माँ की बेटी के जन्म के बाद भी बाँझ ही कहलाई,

हर जगह, हर मन में बेटों की पैदाइश की उम्मीद पलती है 

मेरी कोख से भी बाजरी की फसल पनपी,

तुम्हें इंतज़ार था गेहूँ का तो मैं यहाँ भी अनमनी ही रही,

"आसमान से बूँद खारी बरसे ओर धरती पर इल्जाम लगे सूखी है।" 


मेरी चौखट का सूरज डूब गया है,

मेरी छत का चाँद भी बे-नूर हो चला है 

बदबूदार जीस्त में कोहराम है..! 

कितने पेड़ लगाएँ आज़ादी के सब पर पाबंदी के फल लगे हैं

कौन जाने स्त्रियों की छत पर कब सुहाने फूल खिलेंगे..! 


श्वेत क्रांति की आशा में धूमिल रास्तों पर चलते थक गई हूँ..!

सदियाँ बीत चली बहुत कुछ बदल गया

नहीं बदली सिर्फ़ मेरी दशा,

वो दौर कब आएगा जब मेरे अल्फ़ाज़ों को मायने मिलेंगे 

मेरे वजूद को परवाह, ओर मेरी उड़ान को परवाज़ मिलेगी।

कहो मिलेगी क्या?



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