शून्य से शून्य तक का सफर
शून्य से शून्य तक का सफर
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शून्य से शून्य तक के सफर की मैं बात क्या कहूँ ?
रोचक था, समझ से परे
कैसे खाक हो के खाक से मैं फिर उठा, खड़ा हुआ
और चल पड़ा|
अचम्भित होता है मन
शून्य से शून्य तक के सफर की मैं बात क्या कहूँ ?
असाधारण सी लगती है
विश्वास से परे विश्वास की कोई बात!