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Ajay Singla

Others

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२९३ः देवताओं की भगवान से स्वधाम सिधारने के लिए प्रार्थना

श्रीमद्भागवत -२९३ः देवताओं की भगवान से स्वधाम सिधारने के लिए प्रार्थना

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श्रीमद्भागवत -२९३ः देवताओं की भगवान से स्वधाम सिधारने के लिए प्रार्थना

तथा यादवों की प्रभासक्षेत्र जाने की तैयारी देखकर उद्धव का भगवान के पास आना


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

उपदेश देकर वासुदेव जी को

देवर्षि नारद जब चले गए

तब मिलने आए कृष्ण को ।


ब्रह्मा जी प्रजापतियों के साथ में

भूतगणों के साथ शंकर जी

इन्द्र मरूदगणों के साथ में

द्वारका में आए ये सभी ।


साथ ही आदित्यगण, आठों वसु

रुद्र, नाग, पितर भी वहाँ पहुँचे

दर्शन के लिए आए थे

वे सभी भगवान कृष्ण के ।


वहाँ आकर अनूठी छवि से युक्त

भगवान श्री कृष्ण के दर्शन किए

सब उनकी स्तुति करने लगे

देवताओं ने प्रार्थना की उनसे ।


“ सब योगीजन ध्यान करें जिनका

नमस्कार करें हम उन चरणों को

अग्निस्वरूप ये चरणकमल भस्म करें

हमारी सब अशुभ कामनाओं को ।


हमारे पाप ताप को भस्म करें

वो अग्नि के समान ही

दैत्यराज बलि की दी हुई पृथ्वी को

नापने जब उठे चरणकमल यही ।


सत्य लोक में पहुँचे थे जब ये

तब ऐसा था जान पड़े

जैसे कि ये चरणकमल हैं 

बहुत बड़ा एक विजय ध्वज ये ।


ब्रह्मा जी के पखारने बाद में

तीन धाराएँ गंगा जी के जल कीं

जो उसमें से गिर रहीं, लगें जैसे

तीन पताकाएँ फहरा रहीं ।


असुर सेना भयभीत हो गयी और

देवसेना निर्भय हुई देख इसे

आपके चरणकमल हो कारण हैं

आपके धाम की प्राप्ति के लिए ।


दुष्टों के लिए अधोगति का कारण ये

इससे वैकुण्ठ मिले साधु पुरुषों को

आपके इन्हीं चरणकमलों से

हम लोगों का भी कल्याण हो ।


त्रिलोकि की पापराशि को

धो बहाने के लिए आपने

दो प्रकार की पवित्र नदियाँ

बहा रखीं हैं इस जगत में ।


एक तो कथानदी है

आपकी अमृतमयी लीला से भरी

आपके पदप्रक्षालन के जल से

भरी गंगानदी है दूसरी ।


कानों के द्वारा कथानदी में

शरीर के द्वारा गंगा नदी में

गोता लगाकर विवेकीजन सभी

पाप ताप मिटाते हैं अपने “ ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

ऐसे स्तुति करने के बाद में

आकाश में स्थित होकर देवता

भगवान को ऐसा कहने लगे ।


ब्रह्मा जी कहें “ सर्वतमान प्रभो

हमने पहले जो प्रार्थना की थी

कि अवतार लेकर पृथ्वी पर

उसका भार उतारिए आप ही ।


सो वो काम पूरा हो गया

धर्म की स्थापना कर दी आपने

ऐसी कीर्ति फैला दी जिसे सुनकर

सब अपने मन का मैल मिटा देते ।


यदुवंश में अवतार लेकर आपने

जो लीलाएँ कीं, उनके श्रवण से

अज्ञान से पार हो जाएँगे

साधुस्वभाव पुरुष कलियुग में ।


प्रभो, एक सौ पचीस वर्ष बीत गए हैं

यदुवंश में अवतार ग्रहण किए आपको

कोई आवश्यकता नही है

अब यहाँ रहने की आपको ।


एक प्रकार ब्राह्मणों के शाप से

नष्ट हो चुका यदुवंश कुल ये

इसलिए उचित समझें आप तो

पधारिए अपने परमधाम में ।


पालन पोषण करने को हमारा

और हमारे लोकों का भी “

तब भगवान कृष्ण कहें ब्रह्मा जी से

“ ऐसा निश्चय कर चुका पहले ही ।


पृथ्वी का भार उतार दिया मैंने

परंतु काम बाक़ी है एक अभी

वह यह कि बल, शूरता, धन से

उन्मुक्त हो रहे जो ये यदुवंशी ।


सारी पृथ्वी को ग्रास लेने पर

तुले हुए हैं ये यदुवंशी जो

इन उच्शृंखल यदुवंशियों को

नष्ट किए बिना चला गया मैं तो ।


मर्यादा भूलकर विशाल वंश ये

कर डालेगा संहार लोकों का

ब्राह्मणों के शाप से प्रारम्भ हो चुका

नाश मेरे इस यदुवंश का ।


इसका अंत होने पर ही मैं

धाम को जाऊँगा अपने “

जब भगवान ने ऐसा कहा तो

देवता, ब्रह्मा अपने धाम चले गए ।


उनके जाते ही द्वाका पुरी में

अपशकुन, उत्पात खड़े हो गए

उन्हें देख बड़े, बूढ़े यदुवंशी

भगवान कृष्ण के पास गए थे ।


श्री कृष्ण ने तब उनसे कहा

“ आप लोग तो जानते ही हैं ये

कि ब्राह्मणों ने शाप दिया जो इस वंश को

टाल पाना कठिन है उसे ।


मेरा विचार है कि यदि हम

अपने प्राणों की रक्षा चाहते

तो हमें नहीं यहाँ रहना चाहिए

प्रभासक्षेत्र के लिए निकल पड़ें ।


चंद्रमा को राज्यक्षय रोग हुआ जब

दक्ष प्रजापति के शाप से

स्नान किया प्रभासक्षेत्र में उन्होंने जब

तत्क्षण इस रोग से मुक्त हो गए ।


साथ में प्राप्त हो गयी

कलाओं की अभिवृद्धि भी उनको

स्नान कर, पितरों का तर्पण कर वहाँ

पार करेंगे हम इस संकट को “ ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

कृष्ण ने जब ऐसे आज्ञा दी

प्रभासक्षेत्र में जाने का निश्चय किया

यदुवंशियों ने एकमत से तभी ।


उद्धव जी ने जब ये देखा और

आज्ञा सुनी कृष्ण की उन्होंने

एकान्त में कृष्ण के पास आए वो

उनको ये प्रार्थना करने लगे ।


उद्धव जी ने कहा, “ योगेश्वर

सर्वशक्तिमान, परमेश्वर आप हो

ब्राह्मणों का शाप मिटा सकते थे 

आप जो ये चाहते तो ।


परंतु आपने ऐसा नहीं किया

समझ गया मैं हूँ इससे

कि यदुवंश का संहारक़र, समेटक़र इसे 

इस लोक का परित्याग कर देंगे ।


परंतु मैं आधे क्षण के लिए भी

त्याग दूँ आपके चरणकमलों को

ये सोच भी नहीं सकता मैं

मुझे भी ले चलें अपने धाम को ।


ऐसी स्थिति में, परम भक्त आपका मैं

छोड़ सकूँ आपको मैं कैसे

आपकी माया का डर नहीं मुझे

डर है बस वियोग का आपके ।


परंतु इतना निश्चित है की हम

आपके भक्तजनों के साथ में 

आपके गुण और लीलाओं का 

स्मरण कीर्तन करते रहेंगे ।


आपकी चाल - ढाल, मुस्कान - चितवन

आदि की स्मृति में तल्लीन होते हुए

माया से पार पा लेंगे

चिंता नहीं हमें उसकी इसलिए ।


चिंता है तो बस विरह की आपके

छोड़िए नहीं हमें, साथ ले जाइये “

उद्धव जी की प्रार्थना सुनकर फिर

भगवान कृष्ण ने कहा था ऐसे ।


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