श्री कृष्णा जहाँ रहते है
श्री कृष्णा जहाँ रहते है
मेरा जन्म उस पावन जगह हुआ जिसे "डाकोर" कहते हैंं,
खुद श्री कृष्णा जहाँ रहते हैं,
ऐसे तो कई रूप और नाम हैं उनके,
पर डाकोर में उनको "रणछोड़राय" कहते हैं।
गोमती नदी के किनारे बसा ये एक छोटासा गाँव है,
इस छोटे से गाँव की कुछ दिलचस्प बात है,
कभी आकर देखना मेरे इस गाँव को,
भारत के प्रसिद्ध तीर्थो में से एक तीर्थ है।
भगवन का ये मंदिर अपनी शिल्प कलाओं का निरूपण है।
श्री कृष्णा यहाँ खुद सज्ज हैं,
कुछ अनोखी बात सुन्ना चाहेंगे आप,
द्वारिका से चुराई गई मूरत ये है।
चलो एक रोचक बात बताता हूँ,
बाजे सिंह नमक राजपूत की कहानी सुनाता हूँ,
जो अपने हातो पे तुलसी उगाया करता था,
और साल मे दो बार उसे द्वारिका जाकर अर्पित करता था ।
ऐसा सिलसिला चलता रहा,
वह तुलसियाँ अर्पित करता रहा।
अब जब वो बूढ़ा हो गया,
चलने मे असमर्थ हो गया,
तभी एक रात भगवन ने उसे सपने मे दर्शन दिए,
कहा कुछ ऐसा की वो भी अचंभित हो गया ।
भगवान ने कहा की,
अब तुझे यहाँ आने की जरुरत नहीं,
तेरी भक्ति अब पूरी हुई,
एक आखरी बार यहाँ आजा,
चुरा कर लेजा मेरी ये मूर्ति सदा के लिए वहीं।
मूर्ति तो वहाँ से चुरा ली,
सैनिकों से बचा के गोमती नदी में छुपा दी,
सैनिक निकले मूर्ति को ढूंढ ने भालों से,
ढूंढ़ते हुए भाले की नोक मूर्ति में चुभा दी ।
भाले के निशान आज भी मूर्ति पे कायम हैं,
द्वारकाधीश की मूर्ति जैसी ही है,
निचले हाथ में शंख और ऊपर के हाथ में चक्र है,
काले पत्थर की यह मूर्ति खड़ी मुद्रा में,
बहुत ही सुंदर और भव्य है।
