शोर
शोर
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उर अंतर में मचा है शोर
चारों ओर सन्नाटा है
किसे सुनाई देगा यह सब
नहीं सुनाना आता है।
चारों ओर मचा है शोर
सबको सुनाई देता है
हृदयहीन होते नर को
कहाँ समझ यह आता है।
कर्णकटु बाहर का शोर
द्रवित तो कर देता है
अंतर मन के शोर के आगे
यह सदा दब जाता है।
चल रही लड़ाई अंतर मन में
भावनाओं के अस्तित्व की
चीख रही हैं संवेदनाएं
शोर मचा जाता है।
शोर चाहे बाहर का हो
या मचे अन्तर्मन में
जब संवेदनाएं जीवित होंगी
निजात तभी मिल पाता है।
