शंखनाद
शंखनाद
अतिथि नहीं है जनाब
दस्तक से भी नहीं है इसका कोई काम
मनवार से इसका नाता है
हर कोई इसे साथ लेकर ही आता है
एक बार आए तो
सबको अपना बना लेता है
गले से लगाया तो आपका होकर रह जाता है
यह कोरोना है जनाब,
बुलावे पर ही इसको आना है नहीं
तो सदा के लिए इसने हमें भूल जाना है
सेनीटाइजर, मास्क से सख़्त नफरत रखता है
सोशल डिस्टेंसिंग पर आँखें तरेरता है
डॉक्टर, नर्सों से डरता है
स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस से भी
कोई नाता नहीं रखता है
उल्लू की भांति सड़क पर
पड़ा- पड़ा घंटों तकता है
किसी के ना आने पर
अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है
शंखनाद ,तालियों में तड़पता है
श्रंखला टूट जाने पर आहें भरता है
इन सबके चलते
यमराज से लाया प्रवेश पत्र
( gate pass) भी नदारद हो जाता है