शीश माता
शीश माता
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जरा देख माता अंधेरे चलें सब !
दुखों की डगर बेसहारे पलें सब !!
कहीं तो रहे छाॅंह शीतल सुखों की !
सही तो कहेंगे न, नजारे खलें सब !!
हमें तो लुभाता बहर यह नहीं माॅं !
दिखें जो भली ,वे बहारें छलें सब !!
पुराने भले दिन -पहर भेंट दो माॅं !
न दीया बुझे जो सहारे जलें सब !!
कृपा जो मिले दर झुका शीश माता !
बुलंदी भरे क्यों सितारे ढलें सब !?!