STORYMIRROR

Rashmi Prabha

Others

2  

Rashmi Prabha

Others

शीर्षकहीन रचना

शीर्षकहीन रचना

1 min
1.3K


रात के बारह बज जाते हैं 
और मुझे जब तक जुम्हाई नहीं आती 
लगता है - वक़्त नहीं हुआ सोने का !
किसी को फोन करने का ख्याल आता है 
तब घड़ी देखती हूँ 
ओह! इतना वक़्त हो गया … 
अम्मा की बातें कानों में पड़ती है 
"तू तो आठ बजते सूत जात रहे' 
उसकी गोद में सर रखती हूँ 
जॉन्सन सी गंध आती है 
अंगड़ाई लेकर कहती हूँ - "हाँ रे अम्मा" 
.... 
नींद की दवा न लूँ तो ब्रह्ममुहूर्त तक जागती हूँ 
सोने के क्रम में टुकुर टुकुर देखती हूँ दीवारें,
करती हूँ सुबह का इंतज़ार 
/ उम्र का तकाजा नहीं है यह 
बच्चे दूर चले जाते

हैं 
छुट्टियों में जाओ भी 
तो वह दिन-रात जो बीत जाते हैं 
नहीं लौटते 
तो .... हो जाता है ऐसा !
… 
निर्णय जो कभी सिर्फ अपना होता था 
वहाँ अनमने प्रश्न लड़खड़ाते हैं 
तो लगता है 
लैपटॉप खोलके फॉर्मविले ही खेलूँ 
ईमानदारी से पॉइंट बढ़ाऊँ 
धत्त - 
किसे देना है सफाई 
और क्यों ? 
बच्चे न प्रश्न करते हैं 
न उत्तर माँगते हैं 
प्रश्न और उत्तर वे जानते हैं 
तो वे 
या तो चुप रहते हैं 
या नींद की दवा की तरह 
एक हूँ' दे देते हैं 
हाँ बहुत हुआ तो थोड़ी हिदायत 
… वह भी ज़रूरी ही है !


Rate this content
Log in