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आचार्य आशीष पाण्डेय

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आचार्य आशीष पाण्डेय

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शीर्षक-प्यार का बसंत

शीर्षक-प्यार का बसंत

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प्यार सु रंग बसंत भरे तब रंग चढ़े युवती तन सुन्दर

चूम कपोल मनोहर ले तब प्रेम जगे युवती मन सुन्दर

नेत्र विलास भरे अति चारु चढ़े रि कटाक्ष सुहासित मंजुल

प्यार की रीति बसन्त कहे तब प्रेम रचे युवती जन सुन्दर।। 


सृष्टि सजी धरती खिलती जु बसन्त सजा अति रुप मनोहर

नित्य हवा अति मंजुल हो सुविहंग सु गान करें नित सोहर

नीर सु कोमल रूप धरे त्यजता जु मलीन धरे तन भूषण

चारु लगे अति अम्बर नित्य सदा जन का मन ले नित जो हर।।


हो रि निखार कपोल अती युवती अंखियां अति शोभित हो

जो नर नित्य निहार रहें उनका रि बसंत अती हित हो

धन्य बसंत कहे नर नित्य सदा यश गान करें विचरे

चूम कपोल जु कण्ठ लिए सखि श्वेत कपोल सु रोहित हो।।


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