शबनम
शबनम
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भोर के साथ,
प्रकृति को घेरकर ,
छाई हुई दिखी शबनम ၊
गुलाब की पंखुडी पर,
छोटी छोटी बूंदें ၊
पराग के संग ,
रही थी घुल मिल ၊
भ्रमर छेड़ने की कोशिश,
करता बार बार ၊
पराग संग,
रस पान करने बेकरार ၊
हवा के झोंके से,
सब बेकार ၊
गुस्सा हुआ,
भ्रमर चला दूर ၊
कोमल किरणें,
पड़ी बूंदों पर ၊
चमक उठी,
नवयौवना की तरह ၊
भ्रमर जो देखता दूर से ၊
धीरे धीरे सूरज की किरणें,
भरने लगी दम ၊
बस्, उसी के साथ,
शबनम हो गई खतम ၊
यही है सब जीवन ၊