शब्द तलाशती वो आवाज़ ..!
शब्द तलाशती वो आवाज़ ..!
गूँज रही इन लाखों आवाज़ों में,
शब्द तलाशती वो दबी आवाज़,
दर्द से कराहती उन पीड़ाओं में,
खामोश सदाओं की भी एक साज !
खुशी से दमकते उन अनगिनत चेहरों में
एक बेवजह मुस्कुराता हुआ वो राज़,
भीड़ में छिपे ऐसे कई रुस्तम,
आवाज़ बनूं मैं उनकी भी आज !
आँधियों के मुकाबिल खड़ा वो एक पत्ता,
डगमगा कर भी डटे रहने के उसके अल्फ़ाज़,
ना सोच ये कि, तेरी यहां सुनेगा कौन,
बस अपनी सोच पर मकम्मल अड़ा रह आज!
दरख़्त भारी भी गिर पड़ेगा ,औंधे मुंह के बल,
जड़ों पर निशाना सटीक अगर, लेगा ऐ बाज़
खुशनसीबी मेरे कलम की,जो बन जाये ऐसे जज़्बात,
लिखे कथा छुपे रुस्तमों की, कर सकूं जिन पर मैं भी नाज़..!
