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Akhlaque Sahir

Romance

1.5  

Akhlaque Sahir

Romance

सेलफोन का इश्क़

सेलफोन का इश्क़

1 min
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इक नम्बर से फोन आया था कभी

है मुझे वो याद़ नम्बर आज़ भी।

उसने पूछा था मियाँ हैं आप कौन

कुछ समय तक रह गया था मैं भी मौन।


धीरे-धीरे राब्ता बढ़ने लगा।

फोन उसका बारहाँ आने लगा।

कुछ समय तक कुछ मिनट होती थी बात

फिर बढ़ी मिनटों की घंटों में बात।


सर चढ़ा था भूत उसको इश्क़ का

लग रहा था बेवफ़ा वो इश्क़ का।

एक दिन गुस्से में उसको डाँट कर

बोल बैठा फोन तू मुझको न कर।


फोन पर रोने लगी आवाज़ मद्धम हो गई

चुप हुई तो फिर वो मुझसे इश्क़ फरमा हो गई।

मीठी मीठी बातें वो करने लगी

धीरे-धीरे होश वो खोने लगी।


मैंने बोला ऐ हसीना माजरत चाहता हूँ मैं

फोन रखने की इजाज़त आपसे चाहता हूँ मैं।

हाय वो गुस्से भरा लहज़ा न पूछ

बड़बड़ाते लफ्ज़ में क्या क्या कहा उसने न पूछ।


बे दिली से फोन उसने रख दिया

कुछ दिनों तक फोन उसने न किया।

मैंने भी कोई तवज्ज़ह न दिया

वक्त को कटना था वो भी कट गया।


कुछ दिनों तक बात उनसे न हुई

उसने भी समझा नहीं मुझको कभी।

सेलफोनिक इश्क़ था वेस्टेज गया

आखिर आखिर इश्क़ ए आतिश बुझ गया। 


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