सच सुरज़ सा मुस्काता हैं
सच सुरज़ सा मुस्काता हैं
जब भी तेरे पास आता हूं,
मैं निस्तब्ध सा हो जाता हूं,
सारे शिकवे भूल जाता हूं,
तुझे दर्पण सा जान पाता हूं !
तुझमें ही अपनी छवि पाता हूं,
वक्त को भी साथ तेरे ले आता हूं,
सारे बहाने यूं विसार जाता हूं,
जैसे तुझमें ही पूरी जहां पाता हूं !
मान और मर्यादा की तू मुरत है,
सृष्टि के सौंदर्य की तू सूरत है,
मेरे घर की तू ही नायिका है,
इस जगत की तू ही गायिका है!
मैं तुझमें जब उतर जाता हूं,
औरों से परे मैं हो जाता हूं,
सबके लिए मैं बदल जाता हूं,
सिर्फ़ मैं तेरा तेरा हो जाता हूं !
सच सूरज सा मुस्काता है,
झूठ मौन साध लेता है,
जब भी तेरे पास आता हूं,
मैं निस्तब्ध सा हो जाता हूं !
