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Aryavart Prakash

Others

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Aryavart Prakash

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सच से मुकर गए तुम

सच से मुकर गए तुम

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आईने से डर गए तुम,

सच से मुकर गए तुम।।


आम को पाने के चक्कर में,

बगीचे में ठहर गए तुम।।


गाँव की छोड़ कीमती जायदाद,

पैसे कमाने शहर गए तुम।


दरवाज़े पर रहती हैं एक परछाईं,

अभी तक नहीं घर गए तुम।।


खुद गए समंदर किनारे और,

लहरों को देख सिहर गए तुम।


चाँद बनने की चाहत में,

तारों सा बिखर गए तुम।



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