सबकुछ सामान्य।
सबकुछ सामान्य।
कुछ दिन पहले,
चारों ओर था,
महामारी का प्रकोप,
रखनी पड़ती थी,
सोशल डिस्टैंसिंग,
लगानी पड़ती थी मास्क,
सैनिटाइजर का करना पड़ा था उपयोग।
फिर वैक्सीन आई,
सबको लगाई,
तब जाकर,
महामारी पकड़ में आई।
अब नहीं रख रहे,
सोशल डिस्टैंसिंग,
बहुत कम लगा रहे मास्क,
और सैनिटाइजर का भी हो गया त्याग।
सबकुछ अधिकतर,
सामान्य लगता,
दुनिया का पहिया,
नई दिशा पकड़ता,
हर काम में,
कुछ नया दिखता।
लेकिन कोबिड ने किया,
जो हाल,
बदलना होगा,
सारी दुनिया का सभ्याचार।
बहुत से लोगों की,
चली गई थीं नौकरीयां,
जो थे निजी ओरगेनाइजड सैक्टर में,
वो तो आ गये वापस,
लेकिन जो थे बेचारे,
अनओरगेनाइजड सैक्टर में,
उनके काम धंधे,
हो गये बंद,
हैं भुखमरी की कगार पर।
हालत ये न पास पैसा,
और न काम मिलता,
कैसे होगा इनका गुजारा।
एक ओर दुविधा,
अमीर तो ओर अमीर हो रहे,
परंतु गरीब,
और गरीब हो रहे,
कैसे पाटेंगे ये खाई,
जिससे असमानता की हो भरपाई।
क्यों नहीं युनिवर्सल वेसिक पैंशन पर,
करें गौर,
स्वास्थ्य और शिक्षा हो मुफ्त,
तब बात,
शायद सिर चढ़े।