सब बोल रहे हैं
सब बोल रहे हैं
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सब बोल रहे हैं
सब यानि सब
हवा, धरती आकाश
परिंदे, जानवर, सांप
धर्म, सम्प्रदाय, पंथ
रौशनी अंधेरा चमक
दर्द, खुशी, आनन्द
नफरत उमंग उत्साह
शांति , शोर, धमाके
सब बोल रहे हैं
तुम मनुष्य हो
कुछ लोग सुन रहे हैं
कुछ लोग समझ रहे हैं
कुछ लोग कह भी रहे हैं
हां हम मनुष्य हैं।
आज के इस व्यस्त समय में
सब व्यस्त हैं
कवि कविता लिख रहा है
राजनीतिज्ञ भाषण दे रहा
योजनाकार योजनाएं बना रहे हैं
वैज्ञानिक हथियार बना रहे हैं
देश लड़ रहे हैं
कुछ लड़ने की बात कर रहे हैं
कुछ लड़ने का सामान मुहैया करवा रहे हैं।
आखिर अपने को मनुष्य मानना और अपनी मनुष्यता में जीना
शुरू कब करेगा मनुष्य।