साफ मन
साफ मन
जिसका मन होता है, बहुत साफ
वो तो एक रत्न होता है, नायाब
परमात्मा की नजर में होता है,
वो तो एक कोहिनूर लाजवाब
दुनिया समझे, उसे मूर्ख किताब
पर वो तो होता है, एक मेहताब
जो लख सितारों में चमकता है
बनकर एक सुंदर सा आफ़ताब
जैसे आईने झूठ नही बोलते है
वैसे साफ मन के सच बोलते है
साफ मन होता एक ऐसा गुलाब
जो लाख शूलों को देता जवाब
साफ मन में ही सही चरितार्थ है,
पावन ग्रन्थ रामायण और कुरान
पर जिसका गंदा मन है,जनाब
उसके लिये व्यर्थ, हर तीर्थ स्नान
जिसका गंगा जैसा मन है,साफ
हरक्षण घट भीतर रहते, भगवान
उसका मन मत दुःखा तू साखी,
जो निर्मल मन की है, एक झांकी,
जिसका मन होता है,निष्पाप
वो परमात्मा के तुल्य है,शिवाय
इसमें हज, इसमें काबा तमाम
साफ मन में बसते चारो धाम।