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Goldi Mishra

Children Stories Drama Inspirational

4  

Goldi Mishra

Children Stories Drama Inspirational

साबरमती की कलम

साबरमती की कलम

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मैं सूख चुकी साबरमती की कलम बोल रही हूं,

बात मैं बापू के धुंधले पड़ रहें पदचिन्हों की कर रहीं हूं,।।

अब दिखता कहां जज़्बा सेवा में समर्पित जो जाने का,

सयम और सौम्यता का दुर्ग मानो मिट्टी में धूमिल हो गया,

व्यक्ति अपने विचारों के बिना कुछ नहीं,

अपने पथ से भटके का ना है ठिकाना न ही मंजिल कोई,

बापू के विचार स्याही में सजे बस कागज़ पर ठहरे रह गए,

चरखे और वो सीख बस आश्रम के एक कोने में सिमट कर रह गए,


मैं सूख चुकी साबरमती की कलम बोल रही हूं,

बात मैं बापू के धुंधले पड़ रहें पदचिन्हों की कर रहीं हूं,।।

दरिद्रता को मिटाने की छोटी सी कोशिश की,

देश से करकट मिटा एक स्वच्छ माहौल की बात छेड़ दी,

अरे आत्म निर्भर बनो देश को सशक्त करो,

त्याग कर आधुनिकरण अपने चरखे की रीत चुनो,

हिंसा की बात ना करी सिर्फ अहिंसा ही कठोर राह थी चुनी,

इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षर से अंकित नमक संघर्ष की वो यात्रा दांडी की थी,


मैं सूख चुकी साबरमती की कलम बोल रही हूं,

बात मैं बापू के धुंधले पड़ रहें पदचिन्हों की कर रहीं हूं,।।

बात बस करो या मरो की थी,

खेड़ा और चंपारण की गूंज नए भारत की हूक थी,

पूंछ रही हैं साबरमती की कलम,

कहां खो गए बापू के वो सबक,

जो आए कोई साफ दिल से माफ़ी की सिफारिश ले कर तो तुम माफ़ कर देना,

ये राजा और रंक की भावना को दिल से मिटा देना,


मैं सूख चुकी साबरमती की कलम बोल रही हूं,

बात मैं बापू के धुंधले पड़ रहें पदचिन्हों की कर रहीं हूं,।।

मौन हूं मैं और सामने मेरे इतिहास हैं,

आंदोलन की वो चीख और नारों की पुकार है,

स्वदेशी भावना की झलकी और नए भारत की तसवीर हैं,

इन गलियों इन शहरों से विलुप्त होती महात्मा की तस्वीर हैं,

खादी के रिवाज़ और सादा जीवन,

अब निष्ठा हैं विलुप्त और गुमनाम हैं गांधी सा संघर्षपूर्ण जीवन,।।


मैं सूख चुकी साबरमती की कलम बोल रही हूं,

बात मैं बापू के धुंधले पड़ रहें पदचिन्हों की कर रहीं हूं,।।

गांधी नामा एक सूझ है इश्तहार नहीं,

कल के सवेरे की मांग हैं गुज़री कोई रात नहीं,

मैं भी हूं सोच में डूबी,

साबरमती की कलम आखिर क्यूं सूख गई,

उन विचारों की नींव क्यूं कमज़ोर हो गई,

बहुत कुछ पूछना था इस युग से पर आखिर वो कलम मौन हो गई,।।


धन्यवाद….



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