रोते-रोते हँसना सीखो
रोते-रोते हँसना सीखो
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यूँ तो कई बार रुलाया है ज़िंदगी ने
अब तो रोते रोते हँसना सीखा गई ज़िंदगी
ज़िंदगी में आया था एक ऐसा मोड़
जब रोई थी मैं छुप-छुप कर बहुत
मन ही मन में अपने आपको समझाया
किसके लिए इतना रोना आखिर इतना क्यूँ रोना
वो जगह या वो लोग जहां मुझे चैन नहीं
सोच रही जहन्नूम से जन्नत में हूं आ गई
बस रो लिया एक दिन जी भर के
ख़ुद ही आँसू पोंछकर उठ पड़ी खुशी से
जैसे खुश थी अपने निर्णय से
हँस पड़ी अपने ही रोने पे
सच कहूं तो आज मैं बहुत खुश हूं बस है इतना कहना
रोते रोते हँसना सीखो हँसते हँसते रोना।
