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Kapil Jain

Others

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रोने के लिऐ हमेशा बची रहे जगह

रोने के लिऐ हमेशा बची रहे जगह

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झिझके नहीं गले लगने में और गले लगना इसलिऐ हो कि रोया जा सके कंधे बचे रहें रो कर थके हुओं के सोने के लिऐ हँसना एक फालतू सामान हो और हर इतवार हम निकाल दें इसे रद्दी में ताकि,रोने के लिऐ हमेशा बची रहे जगह कवितायें तभी हों जब भर जाऐं उनमें दुःख पूरी तरह और कहानियों में भी रुला देने की हद तक हो अवसाद किसी भी तरह बचा ली जाऐ रोने की परंपरा ताकि जब पता चले कि तुम्हें प्यार में इस्तेमाल किया जा चुका है तो तुम रो सको, पढ़ सको कवितायें और कहानियों का सहारा हो...


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