रिक्त स्थान
रिक्त स्थान
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बचपन….
कितना सरल कितना मासूम और कितना ख़ूबसूरत था …
हिन्दी की किताबों में जब हम पढ़ते थे हर पाठ के बाद कुछ सवाल…
और …..
कुछ रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये…..
कई बार तो उनको आसान बनाने के लिये तीन तीन विकल्प भी दिये जाते थे… कहा जाता था सही जवाब चुनिये….
और आज..?????
बड़े याद आते हैं वे बचपन के दिन , वो मासूमियत जब विकल्पों से जवाब चुनने के बाद दोस्तों को किताबों में मिलते stars को दिखा कर खुद पर नाज किया जाता था….
बचपन जब हाथों से छूटा…
तो आज ज़िन्दगी में आते सवालों के जवाब ढूँढने पर भी नहीं मिल रहे …
रोज़ाना ज़िन्दगी में ऊन रिक्त स्थानों की पूर्ति हम कैसे करें जब कि वो ख़ाली जगह भरने के लिये शायद यह एक जन्म काफ़ी नहीं ..
एक के बाद एक चैप्टर जैसे ख़त्म होते जा रहे हैं और हम बस इम्तिहान देते जा रहे हैं … ना उसका परिणाम मिल रहा है … ना ही सवालों के सही प्रत्युत्तर ….
जन्म से ले कर यहाँ तक के सफ़र में एक स्वर्ण काल था बचपन… जो फिर लौट कर नहीं आता…
ना ही कुछ रिक्त स्थानों की कभी पूर्ति की जा सकती है…
…..
……..
…….. एक ख़याल , एक सत्य, एक अफ़सोस…
……………