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Manjula Pandey

Others

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Manjula Pandey

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रहस्यमयी नारी

रहस्यमयी नारी

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नारी बिन नर अस्तित्व अधूरा !

अस्तित्व धरा-सा है जिसका पूरा!

फिर भी! भीषण वर्जनाओं को सहती

भर्त्सनाओं का नित भाजक बनती।


जीवन के दुख-सुख में कई रंग वो भरती

समुंदर की गहराई -सी लिए गम्भीरता

नारी खुद में ही है वृहद धरती -सी लगती

फिर भी हिय की कोमलता में लगी ठेस

ज्यों बात-बात में नयन अंसुवन से भरती।


कभी मोम-सी मुलायम प्रीत छलकती

कभी रोष में रण चंडी बन रण में थिरकती

धैर्य धरा- सा बसता इसमें तृण मात्र भी

दुर्बलता इसके मुखड़े पर ना झलकती ।


फिर भी! मात्र प्रेम स्पर्श के वशीकरण से

नैन मूंद कर पूर्ण सुरक्षित मनोदशा से

पुरुष-अंक में अनुचर -सी जा छिपती।


नारी मन के भेद घने हैं, हालाँकि ये

विषम परिश्रम क्षमता हैं रखती

 क्षेत्र अछूता जहां प्रवीणता अर्जित ना करती।

व्यक्तित्व-कृतित्व से विराट-अनुपम-सी

हो कर भी, बन चाकर कोल्हू के बैल-सी

 घर परिवार में नित खटकती फिरती।


इतिहास प्रमाण देता है हमको

संस्कारों का बीजा रोपण नारी

जब दिल से है अपने बच्चों में करती।

गांधी-शिवाजी जैसे महापुरुष को

देकर जन्म सृष्टि को है अचरज से भरती।


रचनाकार ःः मंजुला पांडेय

पिथौरागढ़(उत्तराखंड)



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