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राजकुमारी मेरी आँखें !

राजकुमारी मेरी आँखें !

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कितनी शिद्दत से तुम्हे पुकारी थी मेरी ऑंखें

ख़्वाबों के बिखर जाने से हार गयी मेरी आँखें,


दीपों की भांति सारी रात जागती मेरी आँखें

नींद के शबिस्तान में भारी भारी मेरी आँखें,


तन्हाई में भी कितने ख़्वाब सजाती है ऑंखें

बुझ सकती नहीं रंज की मारी मेरी आँखें,


तुम्हें इस मकां की मकीं बनाने की ख़ातिर  

शबनमी हुई और भी प्यारी ये मेरी आँखें,


एक तेरी ज़ियारत से छलकता है उजाला इसमें

एक तेरे सुर्मा-ए-मंज़र ने निखारी मेरी आँखें,

 

सपनों के तख़्त-ओ-ताज पर बैठी है

ऐसे की जैसे राज-कुमारी हो मेरी आँखें,


हिज़्र के मौसमों ने भी अपना फ़र्ज़ निभाया

उसने अश्कों के सितारों से सँवारी मेरी आँखें !



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