प्यार के दो बोल चाहती हूँ
प्यार के दो बोल चाहती हूँ
थोड़ा प्यार थोड़ा अपनापन ही तो चाहती हूँ।
अर्धांगिनी हूँ मैं प्यार के दो बोल चाहती हूँ।
छोटे शब्दों में ऊँची आवाज़ में बात करना।
देर से घर पहुँचना तुम्हारे लिए आम बात है।
ज्यादा की चाह नहीं प्यार के दो शब्द चाहती हूँ।
अर्धांगिनी हूँ मैं प्यार के दो बोल चाहती हूँ।
तुम्हारा अक्सर तोहमतें लगाना और कहना।
क्या करती हो दिन भर सुस्त आलसी हो थोड़ी तुम।
स्वयं को उलझाकर सखियों संग वक्त बिताती तुम।
पर सखियों से भी कब दिल की बात बोल पाती हूँ।
अर्धांगिनी हूँ मैं प्यार के दो बोल चाहती हूँ।
सुबह से शाम रखूं तुम्हारी हर जरुरत का ख्याल।
तुम्हारे लिए तुम्हारी हर चीज रखूं संभाल।
चाह के भी मैं जज्बात न दिल के खोल पाती हूँ।
अर्धांगिनी हूँ मैं प्यार के दो बोल चाहती हूँ।
आप ही परमेश्वर प्राणनाथ प्रीतम प्यारे हो।
मेरे जीवन का आधार तुम मेरे सहारे हो।
कुछ बातें सिवाय आपके कहीं न बोल पाती हूँ।
अर्धांगिनी हूँ मैं प्यार के दो बोल चाहती हूँ।