पूर्णिमा
पूर्णिमा
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पूर्णिमा का चंद्र आता,
वृत्त अंबर पर सुहाता।
पूर्णता जीवन में भर लो,
इस जगत को वह सिखाता।
कला षोडश धारकर जब,
सोम मंडल व्योम आता।
सीख देता सीख लो तुम,
ज्ञान जो जीवन चलाता।
चंद्र आकर्षण को जानो,
महाशक्ति बीज मानो।
खींच लेता जड़ व चेतन,
वश में रहता है कहाँ मन ?
पूर्णिमा का चंद्र दानी,
रश्मियों का दान करता।
ज्योत्सना निज रजतमय को,
धरती तल पर है बिछाता।
रौप्यमय जब धरणी होती,
वेदना तन मन की खोती।
चित्त बन चकोर सबका,
ध्येय का है गीत गाता।
आओ मिलकर हम सभी जन,
ईश सर्जन को निहारें।
शुद्धता लख सोम की हम,
शुद्धता जीवन में धारें॥