पूर्ण ज्ञान
पूर्ण ज्ञान
पथ पर चल रहे एक ऋषि थे
पीछे पीछे एक शिष्य चल रहा
दशकों से ऋषि प्रवचन कर रहे
समय बीते बस इसी में उनका।
शिष्य प्रश्न करे, कहे गुरु जी
ज्ञान दिया लोगों को इतना
क्या कुछ ऐसा भी है जो आपने
अपने बचनों में अभी कहा ना।
गुरु ने एक पत्ता उठाया
मौसम था उस समय पतझड़ का
लाखों पत्ते पड़े जमीं पर
गुरु हंसे, शिष्य से ये कहा।
हाथ में जो पत्ता दिखाया, कहा
अभी तक बस इतना कह पाया
ये पत्ते जो पड़े जमीं पर
कहने को था जो, इतना रह गया।
भंडार ज्ञान का तो अनंत है
सब पा ना सको और किसी से
अपने हृदय में झांक के देखो
प्रकाश ज्ञान का है उसी में।
मुझसे जो मिला पूर्ण ना समझो
बाक़ी प्रयास तमहें करना होगा
मैंने तो ज्ञान की एक बूँद दी
कमंडल तुम्हें ही भरना होगा।