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ca. Ratan Kumar Agarwala

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ca. Ratan Kumar Agarwala

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पत्थर

पत्थर

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पत्थर की यही है जिद,

कभी यह पिघलता नहीं।

पत्थर की यही है रीत,

टूटता है, बदलता नहीं।

 

पत्थर सदा सिखाता मुझे

मुश्किलों से न घबराऊँ।

पत्थर यही बतलाता हमे,

मुसीबतों में भी टिक जाऊँ।

 

पानी के थपेड़े सहता रहता,

होता न कभी टस से मस।

ओले पड़े, बारिश आए,

रहता खुद में मदमस्त।

 

कहता मुझे, “आए कितनी भी आफत,

अपने पथ पर रहना अडिग।

आए राह में कितनी भी बाधाएं,

बढ़ते रहना जीवन में निर्भीक”।

 

कभी कहता मुझसे यह पत्थर,

की सड़क पर पड़ा वह सब देख रहा।

धर्म के नाम देखा चलते तलवार,

इंसानों के द्वेष सारे वह देख रहा।

 

कहता है मुझसे वह छोटा सा पत्थर,

कि न रहूँ सदा उससा मूक वधिर।

इंसान को इंसान से लड़ता देख,

रोकूँ उन्हे पर न होऊँ मैं अधीर।

 

यही इंसान तराशता पत्थर,

पा लेता उसी में भगवान।

भेदभाव फिर भी भुला न पाता,

कर के भी प्रभु के दर्शन।

 

कहता यह पत्थर मुझसे यह,

मैं भी तराश लूँ अपने आप को।

कर जाऊँ कुछ ऐसा काम,

मैं भा जाऊँ सब के मन को।

 

क्या हो जो मैं पूज लूँ पत्थर?

क्या हो जो मैं तराश लूँ भगवन?

क्या हो जो मैं सजा लूँ मंदिर?

अगर रहे नफरत मेरे ही अंदर?

 

पत्थर फिर भी रहेगा पत्थर,

नहीं बनेगा यह पत्थर भगवान।

अगर न तराश सका खुद को,

क्या करूँ फिर मंदिर बनाकर?

 

सीखे आज मैने बहुत कुछ,

इस जीवन के सही मायने।

हैवान नही, इंसान बनूँ,

सकूँ इस धरा को संभालने।

 

मजबूत बनूँ, तटस्थ रहूँ,

हर विपदा को सहूँ धैर्य से।

इंसान को इंसान से जोडूँ,

अपने हर अच्छे कार्य से ।



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