प्रतिभा
प्रतिभा
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जाग मुसाफिर जाग जरा,
प्रतिभा अपनी जान जरा,
रह रह तू बंधन में प्यारे,
परिंदा सा तू बन गया।
पहचान जरा अपनी शक्ति,
नील गगन में विचरने सी,
प्रतिभा छिपी तुझमे ऐसी,
ब्रह्मकमल सा खिलने सी।
तोड़ जरा ये बंधन सारे,
कुरीतियों से जो जकड़े है,
तेरी ही पहचान तुझसे,
जैसे भूले बिसरे हैं।
तज जरा पांवो की बेड़ियां
प्रतिभा अपनी पहचान ले न,
जो न लिखी अब तक कहानी,
वह आज तू लिख दे न।।
