"प्रकृति की करो देखभाल"
"प्रकृति की करो देखभाल"
5 जून यानी, विश्व पर्यावरण दिवस।
आज ही 1974 में, मना था पहला दिवस।।।।
प्रकृति अपने अंदर न जाने, क्या-क्या है समायें।
हर मुसीबत पहले झेलती ताकि, हम सब बच जायें।।
पेड़-पौधे है सब, प्रकृति के रखवाले।
इनके बिन हम भी, न चलने वाले।।
कोरोना ने हम सबको, आईना है दिखाया।
बिन ऑक्सीजन के कोई भी, न बच पाया।
यह जो आजकल हो रहा, प्रकृति से खिलवाड़।
इसीलिए अक्सर आ रहे है, भूकंप और बाढ़।।
है मकसद इसका प्रकृति की, खासियत को बताना।
इसके साथ गलत करने वालों, को है समझाना।।
परिंदों का है आशियाना, प्रकृति का आसमान।
अफ़सोस। धीरे-धीरे यह सब, हो रहे हैं गुमनाम।।
अगर चाहते हो देना, प्रकृति का साथ।
तो आओ मिलायें हम, एक दूसरे से हाथ।।
प्रकृति देती है हमें, साफ हवा और शुद्ध पानी।
इसे साफ रखने में, बरतनी होगी सावधानी।।
अब हम प्रकृति की न कर रहे, बिलकुल भी देखभाल।
तभी तो आजकल है हर तरफ, बहुत बुरा हाल।।
आने वाले दिनों में अगर, चाहते हो खुशहाली।
तो पेड़-पौधे लगाकर, पहले करो हरियाली।।
हम जमीं पर हर जगह, पेड़ ज़रूर लगाएंगे।
आने वाली मुसीबतों से, सबको बचाएंगे।।