"बचपन की यादें,कोई लौट दें"
"बचपन की यादें,कोई लौट दें"
आओ सुनाता हूँ, बचपन की कहानी !
जब हम सब करते थे, खूब मनमानी।
काश ! कोई हो, जो हमें, लौटा दे !
हमारे बचपन की, वो हसीन यादें।
बचपन में जब, हम सब, रहते थे एक साथ !
हर वक़्त करते थे बस, खेलने की ही बात।
याद है, वो हम सबका मिलकर, एक साथ खाना !
और स्कूल न जाने का, ढूँढना कोई बहाना।
गलती करने पर, माँ का हमें समझाना !
फिर प्यार से हमें, देखकर मुस्कुराना।
पापा का शाम को, घर वापस आना !
आते ही उनको, प्यार से गले लगाना।
माँ-बाप ने बचपन में उँगली पकड़कर, चलना हमें सिखाया !
जब भी की कोई ख्वाहिश, उसे पूरा करके दिखाया।
याद है वो पल, जब पहली बार चलना सिखाया !
मेरे गिरने पर भी, हर कोई ताली बजाया।
बचपन में जब, पहली बार, गोद में, था उठाया !
मेरे रोने पर, हर कोई था, मुस्कुराया।
बचपन में हम भाई-बहनों से, आपस में करते थे लड़ाई !
मगर साथ में ही हँसते, खेलते, खाते और, करते थे पढ़ाई।
वो बचपन में, भाई-बहनों का हर वक़्त साथ !
बड़े होने पर क्यूँ? छोड़ देते, एक-दूसरे का हाथ।
वो स्कूल में बेंच के लिये, आपस की लड़ाई !
याद है, कभी-कभी दोस्तों ने, पिटाई भी करवाई।
बचपन में हम सबका एक साथ, कही पर घूमने जाना !
फिर वापस आकर एक-दूसरे को, वहाँ की हर बात बताना।
बचपन में जब, बाज़ार में, होता था, पापा का साथ !
हर वो चीज़ थी अपनी, जिस पर भी रख दो हाथ।
क्योंकि ईंट से नहीं, माँ-बाप से बनता है परिवार !
अगर एक है छत, तो दूसरा है दीवार।
ऐसे ही है, बचपन की, बहुत सारी, यादगार बातें !
जिन्हें सोचकर ही अब, हम सब है मुस्कुरातें।
काश ! फिर लौट आये, वो बचपन के पल !
जो रह गये है बनके, सिर्फ एक, हसीन कल !