परिंदा
परिंदा
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मैं परिंदों-सा मुक्त,
उन्मुक्त गगन को चाहता हूं।
हरी-भरी डालियों पर
एक आशिया बनाना चाहता हूं।
जो भ्रम हैं उस भ्रम को पार कर
क्षितिज को जाना चाहता हूं।
मैं परिंदो-सा मुक्त,
उन्मुक्त गगन को चाहता हूं।
जो असंभव हैं उसे संभव करना चाहता हूं,
वादियों में ढलता सूरज को
समीप से देखना चाहता हूं।
हर नियमों को तोड़ना चाहता हूं,
जो मानवों ने बनाई,
उन सीमाओं को लांघना चाहता हूं।
मैं परिंदों-सा मुक्त,
उन्मुक्त गगन को चाहता हूं।
